आईएएस वरुण कुमार वर्णवाल टायर पंक्चर की दुकान से आईएएस (2013) बैच बनने तक का सफर | Motivational story of Mr Varun Kumar Baranwal cycle puncture shop to IAS 2013
photo credit -Amar Ujala |
ऐसी कहानी किसी को भी प्रेरित कर सकती है।एक इंसान जो निरी गरीबी में जीता है, जिसके पिता टायर पंक्चर की दुकान चलाते है ओर उनकी मृत्यु होने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उन पर आ जाती है ,ऐसी परिस्थितियों में वो न केवल बहुत मेहनत करते है वल्कि देश की सबसे कठिन परीक्षा में सुमार आईएएस जैसी कठिनतम परीक्षा में 32 वी रैंक हासिल करते है। जी हां हम बात कर रहे है श्री वरुण वर्णवाल की जिन्होंने असाधारण परिस्थितियों का सामना कर आईएएस जैसी शानदार परीक्षा में सफलता पायी।
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ये बोइसार, जिला पालघर, महाराष्ट्र के रहने वाले है। इनके पिता साईकिल की पंक्चर की दुकान चलाते थे। इनके दो भाई और दो बहनें है। जब ये 10 वी कक्षा में थे तो 21 मार्च 2006 को इनकी 10 वी की परीक्षा समाप्त हुयी थी। 24 मार्च 2006 को इनके पापा की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी थी। घर मे सारे बहन भाइयों में सबसे बड़े होने के कारण घर की जिम्मेदारी इनके ऊपर आ गयी थी। लेकिन समय का संयोग जब 10 वीं का परिणाम आया तो इन्होंने अपने स्कूल में टोप किया था। इनका मन पापा की पंक्चर की दुकान को चलाने का था ताकि ये घर की जिम्मेदारी को संभाल सकें। इनकी मां ने जब यह रिजल्ट देखा तो इनको आगे पढ़ने के लिए बोला ओर दुकान की जिम्मेदारी खुद संभालने को बोला,लेकिन आगे पढ़ाई के लिए 10000 रूपए चाहिए थे तो फिर इन्होंने अपनी माँ को पढ़ने से मना कर दिया। किस्मत का संयोग देखिय रास्ते में इनके पिता का इलाज करने वाले डॉक्टर अपने बेटे का एडमिशन कराने को जा रहे थे तो उनकी नजर दोनों माँ बेटे पर पड़ी तो बो उनके पास गए और बोले कि बेटा तुमारे पापा का सुना बहुत दुख हुआ ये बताओ तुमारी पढ़ाई केसी चल रही है तो उनकी मां में उनको सारी बात बतायीं। डॉक्टर साहब ने उनको 10000 रूपए अपनी जेब से निकाल कर दिए। इन्ही पैसों से उन्होंने अपना एडमिशन लिया। इनकी बड़ी बहन और ये दोनों ट्यूशन पढ़ाकर परिवार की जिम्मेदारी निभाते थे।
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शिक्षा और श्री वरुण कुमार वर्णवाल
इन्होंने 10 वीं की परीक्षा में 89 % अंक प्राप्त किये थे। इन्होंने अपने शहर में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। 12वीं करने के बाद ये MIT, पुणे इंजीनियरिंग करने चले गए थे। ये वताते हैं कि इनका पढ़ाई की फीस इनके दोस्तो या टीचर्स ने ही भरी है। इंजीनिरिंग की पढ़ाई के समय प्रथम बर्ष में इन्होंने युनिवेर्सिटी टॉप की थी, 86% अंक प्राप्त किये,उस समय ये यूनिवर्सिटी का रिकॉर्ड था। स्कॉलरशिप आने में भी बहुत समय लगता था इस लिए जब इनके टीचर्स को इनकी घर की परिस्थितियों के बारे में पता चला तो आगे बर्षो की फीस इनके टीचर्स ओर दोस्तो ने भरी। ये वताते है कि मेरी फीस या तो मेरे दोस्त भरते थे या टीचर्स।
“11th और 12th जिंदगी के सबसे कठिन दिन रहे हे। मेरा शेडूल ऐसा था की में सुबह 6 बजे उठता था 7 बजे स्कूल जाता था 1 बजे आता था फिर 2 से रात के 10 बजे तक टूशन पढ़ाता था।मेरी बड़ी बहन स्कूल में पढाती थी और टूशन भी पढ़ाती थी। मै रात को दुकान पर जाता था ।हिसाब किताब करके बापस घर आता था फिर पढ़ाई करता था।“ - श्री वरुण वर्णवाल
इंजीनिरिंग के बाद MNC कंपनी Delloite में चयन हो गया । इनके दोस्तो ने भारतीय इंजीनिरिंग सर्विस करने को बोला लेकिन कुछ दोस्तों ने यूपीएससी की तैयारी के लिए बोला। इन्होंने यूपीएससी की तैयारी का मन बनाया तो इनकी माँ ने MNC की नोकरी जॉइन कर तुरंत पैसे कमाने को बोला लेकिन ये अपना मन यूपीएससी की तैयारी के किये बना चुके थे इसलिए इनकी माँ काफी दिन तक इनसे नाराज भी रहीं। इन्होनें राजनीति विषय के साथ पहली बार मे बर्ष 2013 की यूपीएससी की परीक्षा में 32 वीं रैंक प्राप्त की ओर आईएएस अफसर बने।
ये वताते है कि
“जब मै आईएएस में चयनित हुआ तो सबसे ज्यादा खुशी मेरी माँ को ही हुई। मै अगर आज आईएएस हुँ तो इसमें मेरी माँ की मेहनत है। मेरे दोस्त और टीचर्स ने मुझे आज यहां तक पहुंचाने में अविस्मरणीय योगदान दिया है।“
श्री वरुण वर्णवाल
आशा करता हूं कि ये लेख आपको पसंद आया होगा।
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