समलैंगिकता अपराध नहीं-सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय 2018 | Samlengikta in India | Latest News On Section 377 in Hindi
आजकल समलैंगिकता पुरे देश में, समाचारो में, सुर्खियों में है; जिसका कारण हाल ही में आया सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है। पहले समलैंगिकता भारतीय दंड सहिंता की धारा 377 में दंडनीय अपराध था; लेकिन जैसे ही 06 सितम्बर 2018 को माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय समलैंगिकता के पक्ष में आया है; तब से समलैंगिक लोग खुशिया मना रहे है और समलैंगिकता को धारा 377 भारतीय दंड संहिता की अपराध की श्रेणी से निकाल दिया है, यानि अब समलैंगिकता भारतीय दंड विधान के अनुसार अपराध नहीं है । समलैंगिक कई सालों से कानूनी अधिकार की मांग कर रहे थे, लेकिन अब जाकर उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कानूनी मान्यता दी है इस लेख में, मैं आपको बताऊंगा कि-
- समलैंगिकता को सुप्रीम कोर्ट ने अपराध की श्रेणी से बाहर किया|
- समलैंगिकता क्या है (What is Homosexuality)?
- Gay(गे), Lesbian(लेस्बियन), उभयलिंगी (Bisexual) and Transgender क्या है?
- वर्ष 2016 में समलैंगिकता के खिलाफ पंजीकृत अपराध
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Lesbian-Homosexual |
समलैंगिकता सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय:-
सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिगत पसंद और सम्मान से जीवन जीने के अधिकार पर मुहर लगाते हुए सहमति से एकांत में दो वयस्कों द्वारा बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। कोर्ट ने यौन अभिरुचि के आधार पर समलैंगिकों के साथ भेदभाव को उनके मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए कहा कि उन्हें भी सम्मान से जीवन जीने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 तथा 21 की व्याख्या की। इसके साथ ही कोर्ट ने आइपीसी की धारा 377 के उस अंश को रद कर दिया है, जो दो वयस्कों के बीच एकांत में सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध घोषित करती थी। हालांकि, नाबालिगों के साथ या सहमति के बगैर बनाए गए संबंध और जानवरों के साथ इस तरह की हरकत धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध बना रहेगा।
दूरगामी परिणाम वाला यह फैसला गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की संविधान पीठ ने सुनाया है। पीठ के चार जजों ने अलग-2 फैसला दिया, लेकिन सभी फैसले सहमति के हैं। जस्टिस दीपक मिश्रा ने स्वयं और जस्टिस खानविलकर की तरफ से फैसला दिया। अन्य तीन जजों ने सीजेआइ से सहमति जताते हुए अलग फैसले दिए। शीर्ष कोर्ट ने अपने 2013 के सुरेश कौशल फैसले को खारिज कर दिया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट का 2009 का नाज फाउंडेशन मामले में दिया फैसला रद कर दिया था। हाई कोर्ट ने वही व्यवस्था दी थी, जिस पर पीठ ने मुहर लगाई है।
जस्टिस मिश्रा ने मुख्य फैसले में कहा है कि संवैधानिक लोकतंत्र का उद्देश्य समाज का प्रगतिवादी बदलाव करना होता है। हमारा संविधान बदलाव की अवधारणा रखता है। इसके प्रावधानों को शाब्दिक अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए। इसकी व्याख्या में बदलते समय की मंशा परिलक्षित होनी चाहिए। व्याख्या में न सिर्फ व्यक्तिगत अधिकार और सम्मान से जीने की मान्यता शामिल है बल्कि ऐसा वातावरण तैयार करना है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक उत्थान का अवसर मिलता हो।
प्रगतिवादी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से देश के समलैंगिक (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) समुदाय को बड़ी राहत मिली है। एलजीबीटी समुदाय लंबे समय से समलैंगिक संबंधों को कानूनी बनाए जाने की लड़ाई लड़ रहा था। । कोर्ट ने यह फैसला समलैंगिक संबंधों को अपराध घोषित करने वाली धारा 377 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनाया है। इसके बाद भारत भी उन देशों में शामिल हो गया है, जहां समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता है।
जानते हैं समलैंगकिता क्या है -
समलैंगिकता क्या है (What is Homosexuality)?:-
समलैंगिकता समान लिंग के व्यक्तियों के बीच भावनात्मक आकर्षण, यौन आकर्षण या यौन आचरण है। एक यौन परिचय के रूप में, समलैंगिकता समान लिंग के व्यक्तियों को "उत्साही, भावनात्मक, या संभावित यौन आकर्षण का एक सतत उदाहरण" है।
Gay, Lesbian, Bisexual and Transgender क्या है?: -
Gay (गे):-
पुरुष जो रोमांटिक, कामुक और भावनात्मक भावना में पुरुषों के लिए आकर्षित होते हैं।
लेस्बियन (Lesbian):-
महिलाएं जो अन्य महिलाओं में यौन, भावनात्मक, शारीरिक, या संभावित रूप से गहरा आकर्षण महसूस करती हैं।
उभयलिंगी (Bisexual):-
एक व्यक्ति जो अपने लिंग के व्यक्तियों में यौन, भावनात्मक, शारीरिक, यौन तथा संभावित रूप के साथ-साथ दूसरे लिंग के व्यक्तियों में कामुक भावना को महसूस करता है। उभयलिंगी कहलाता है।
ट्रांसजेंडर (Transgender):-
ट्रांसजेंडर लोगों के पास लिंग पहचान या लिंग अभिव्यक्ति होती है जो उनको जन्म के समय लिंग से अलग होती है । ट्रांसजेंडर लोगों को कभी-कभी ट्रांससेक्सुअल कहा जाता है यदि वे एक लिंग से दूसरे लिंग में संक्रमण के लिए चिकित्सा सहायता लेते हैं।
ट्रांस महिला (Trans-woman):
ट्रांस महिला वो होती है जो अपने आपको चिकित्सकीय सहायता द्वारा आदमी से औरत में खुद को बदल लेती है।
ट्रांस आदमी (Trans-men):
ट्रांस आदमी वो होते है जो अपने आपको चिकित्सकीय सहायता द्वारा औरत से आदमी में खुद को बदल लेते है।
धारा 377 क्या होता है इसके बारे में भी जान लेते है
अप्राकृतिक अपराध (धारा 377 IPC):
अप्राकृतिक अपराध (धारा 377 IPC):
अप्राकृतिक अपराध-जो भी स्वेच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति के खिलाफ शारीरिक संभोग करता है, उसे आजीवन कारावास, या दस साल तक की अवधि के लिए कारावास के साथ दंडित किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण। - इस खंड में वर्णित अपराध के लिए आवश्यक शारीरिक संभोग करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है।
वर्ष 2016 में समलैंगिकता के खिलाफ पंजीकृत अपराध:
जब समलैंगिकता भारतीय दंड सहिंता की धारा 377 के अंतर्गत अपराध था तो बर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक मुकदमे पंजीकृत हुए थे, दूसरे नंबर पर केरल का स्थान था फिर दिल्ली। शीर्ष तीन राज्यों में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2016 में समलैंगिकता (अपराध) के संबंध में निम्नलिखित मुकदमे पंजीकृत हुए थे।
Table समलैंगिकता (अपराध) के संबंध में पंजीकृत अपराध (377 आईपीसी) (2016): -
States
|
Registered case crime (377)
|
Uttar Pradesh
|
999
|
Kerala
|
207
|
Delhi
|
183
|
निष्कर्ष: -
संवैधानिक लोकतंत्र का उद्देश्य समाज में प्रगतिशील परिवर्तन करना है। हमारे संविधान में बदलाव की अवधारणा है। इसके प्रावधानों को शाब्दिक अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए। इसकी व्याख्या में, समय बदलने का इरादा प्रतिबिंबित होना चाहिए। व्याख्या ने, न केवल व्यक्तिगत और सम्मान से जीने को मान्यता दी है , बल्कि इसने एक ऐसा माहौल बनाया है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक उत्थान होने का मौका मिलता है।
इस प्रगतिशील सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने समलैंगिक (लेस्बियन, समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर) समुदायों को बहुत राहत दी है। एलजीबीटी समुदाय इसे कानूनी बनाने के लिए लंबे समय से लड़ रहा था। कई याचिकाओं ने धारा 377 को चुनौती दी, जो समलैंगिक संबंधों को अपराध घोषित करता है। इसके बाद, भारत उन देशों में भी है, जहां समलैंगिक संबंधों की कानूनी मान्यता है।
अंत में, मैं आपको बताना चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय के दिन स्पष्ट किया कि समलैंगिक एक साथी (Couple) तो हो सकतें है, लेकिन जीवनसाथी (Lifepartner) नहीं। माननीय सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश DY Chandrachud ने फैसले को स्पष्ट करते हुए कहा कि समलैंगिक लोग साथी तो हो सकते है लेकिन जीवनसाथी नहीं यानि इस बात से कम से कम ये बात स्पष्ट है कि अभी LGBT लोग जीवनसाथी नहीं वन पाएंगे। जीवनसाथी बनने के लिए इन्हे अभी और इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि जिस भी देश में इन्हें कानूनी मान्यता मिली है, धीरे धीरे कानूनी लड़ाई लड़कर ही कानूनी पहचान मिली है।
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