Zero FIR Kya hai | Zero FIR (शून्य प्राथमिकी) किसे कहते है | पुलिस #ZeroFIR (#0FIR) पर कैसे कारवाही करती है
नमस्कार दोस्तों मैं इस लेख में जीरो प्राथमिकी ( Zero FIR ) के बारे में बताऊंगा तथा पुलिस उस पर किस तरह से कार्य करती है? उसके बारे में भी बताऊंगा।
Zero fir (शून्य प्राथमिकी) किसे कहते है?
प्रथम सुचना रिपोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता (Cr. PC) की धारा 154 (3) के अंतर्गत Cognizable Offences में दर्ज की जाती है पुलिस Cognizable Offences के मामलो में तुरंत प्राथमिकी दर्ज कर बिना कोर्ट की अनुमति से गिरफ़्तारी या कारवाही कर सकती है।
सरकार ने विषम परिस्थितियों में भी नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने हेतु ZERO FIR का प्रावधान बनाया है। सामान्यतः पुलिस उसी थाना पर अभियोग पंजीकृत करती है जहाँ पर घटना घटित हुई हो, कहने का मतलब है है की प्राथमिकी लिखने के घटना स्थल का बहुत ही महत्व है, किन्तु सरकार ने ऐसा प्रावधान भी बनाया है कि पीड़ित व्यक्ति गंभीर अपराधों में या महिला उत्पीड़न सम्बन्धी अपराधों में किसी भी थाना पर अबिलम्ब मुक़दमा पंजीकृत करा सकता है, जिससे पीड़ित को तुरंत कारवाही मिल सकें । इसके अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति गंभीर अपराध (Heinous crime) जैसे हत्या, लूट,डकैती,बलात्कार आदि के सन्दर्भ में अविलम्ब कार्यवाही हेतु किसी भी पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं एवं अभियोग पंजीकरण के बाद पुलिस अभियोग के सभी दस्तावेजों को अपराध नंबर पर लेने हेतु तथा विवेचना हेतु सम्बंधित थाने में भेज (Transfer) कर देती है ।
अक्सर FIR पंजीकृत कराते समय कार्यवाही को सरल बनाने हेतु इस बात का ध्यान रखा जाता हैं कि घटनास्थल घटित थाना पर ही FIR दर्ज होती है । परन्तु कई बार अपराध घटित हो जाते है जब पीड़ित को विपरीत एवं विषम परिस्थितियों में किसी दूसरे पुलिस थाने (जिस थाना के क्षेत्र में घटना घटित नहीं हुई हो ) में केस दर्ज कराने की जरुरत पड़ जाती हैं; किन्तु अक्सर ऐसा देखा जाता हैं कि पुलिस वाले अपने सीमा से बहार हुई किसी घटना के बारे में अभियोग पंजीकृत नहीं करना चाहते है । ज्ञात हो कि FIR आपका अधिकार हैं और कोई भी पीड़ित व्यक्ति कही भी अपने बिरुद्ध होने बाले अपराध कि शिकायत या प्राथमिकी दर्ज करा सकता है ।
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पुलिस किस तरह से जीरो प्रथम सुचना रिपोर्ट पर कारवाही करती है?
पुलिस गंभीर मामलों जैसे लूट, हत्या , डकैती या बलात्कार आदि में शिकायत मिलते ही ० अपराध नंबर पर अभियोग दर्ज करती है, फिर वह ZERO FIR सम्बंधित थाना को भेज दी जाती है जहा पर क्राइम घटित हुआ था। उस थाना की पुलिस उसे सबसे पहले जीरो नंबर से क्राइम नंबर पर लेती है जिसके स्लैश में जिस बर्ष मुक़दमा पंजीकृत किया गया है उस बर्ष का भी उल्लेख होता है । उसे रोज़नामचा आम में अपराध नंबर देने के बाद फिर वह विवेचक को विवेचना या तफ्तीश हेतु सुपुर्द कर दी जाती है । उसके बाद वह विवेचक उस पर विधिवत कारवाही करता है। ZERO FIR पंजीकृत होकर जब अपराध नंबर पर ले ली जाती है तो वह उस थाने के रजिस्टर्ड में एंट्री की जाती है जैसे की उसी थाना पर वह मुक़दमा दर्ज हुआ हो ।
ZERO FIR निसंदेह बहुत ही अच्छा अधिकार है खासकर गंभीर अपराधों में तथा महिला सम्बन्धी अपराधों में।
महिला सम्बन्धी अपराधों में तो यह एक वरदान है क्युकि महिलायों को Government द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि महिला अपने साथ हुई किसी भी तरह के उत्पीड़न जैसे बलात्कार दहेज़ के लिए उत्पीड़न sexual harassment इत्यादि को किसी भी थाना पर दर्ज करा सकती है जैसे अपने मायके या ससुराल या जहा पर वह किराये पर भी रही है तब भी वह मुक़दमा दर्ज करा सकती है चाहे घटना उस थाना क्षेत्र में घटित न हुई हो ।
आशा करता हु आपको इस लेख से Zero FIR के बारे में जानकारी मिली होगी ।
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