Pawan Kumar Agrahari vs Public Service Commission, UP and Others Writ Petition Number 2669 (MB) of 2009


Pawan Kumar Agrahari vs Public Service Commission, UP and Others Writ Petition Number 2669 (MB) of 2009 

ह रिट याचिका एक उम्मीदवार द्वारा दायर की गई, जो UPPSC (Uttar Pradesh Public Service Commission) द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षा (Preliminary Examination) में उपस्थित हुए थे। राज्य लोक सेवा आयोग, अर्थात्, संयुक्त राज्य / अपर अधीनस्थ सेवा (प्रारंभिक परीक्षा), 2007 जिसे वह केवल एक अंक से उत्तीर्ण नहीं कर पाया था।

Writ Petition No- 2669 (MB) of 2009

Pawan Kumar Agrahari vs. Public Service Commission, U.P. and Others

Honourable Pradeep Kant, justiceHonourable R.R. Awasthi, Justice

Court no-1

Date of Judgement- 27-07-2009

याचिकाकर्ता (Petitioner) के वकील का प्रस्तुतिकरण यह था कि यदि याचिकाकर्ता (Petitioner) को एक अंक से सम्मानित किया जाता है, तो वह मुख्य लिखित परीक्षा (Main written Examination) में उपस्थित होने के लिए अर्हता प्राप्त करेगा। अपनी दलील के समर्थन में उन्होंने प्रस्तुत किया है कि एक प्रश्न गलत प्रश्न (Wrong Question) था, अर्थात् प्रश्न सं 73 इसलिए याचिकाकर्ता (Petitioner) एक अंक पाने का हकदार था, क्योंकि उसने एक ही प्रयास किया था, और यदि एक अंक दिया जाता है, तो वह योग्य उम्मीदवारों (Qualify candiadtes) की सूची में खड़ा होगा। आगे दलील दी कि तीन अन्य प्रश्नों में, अर्थात्, प्रश्न सं 35, 44 और 91, जिनका याचिकाकर्ता (Petitioners) द्वारा सही उत्तर दिया गया था, उन्हें अंक नहीं दिए गए हैं।

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Pawan Kumar Agrahari vs Public Service Commission, UP and Others Writ Petition Number 2669 (MB) of 2009

इस न्यायालय ने, हलफनामों (Affidavit) के आदान-प्रदान के बाद, विशेषज्ञों की राय की मदद ली। आयोग (UPPSC) ने अपने जवाबी हलफनामे (Counter Affidavit) में कहा था कि आयोग (UPPSC) के नीतिगत निर्णय के अनुसार, मूल्यांकन में पूरी पारदर्शिता (Complete Tranperency) लाने के लिए, उम्मीदवारों से सभी प्रश्न के उत्तर और सभी विषयों की उत्तर कुंजी के संबंध में आपत्तियां (Objections) आमंत्रित करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित की गई थी जिसे संयुक्त राज्य / अपर अधीनस्थ सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा, 2007 (UPPSC Combined Upper Subordinate) द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया गया था। कुल 81 उम्मीदवारों ने आपत्ति प्रस्तुत की थी। अंतिम तिथि तक वैकल्पिक विषय (Optional Paper) भारतीय इतिहास की उत्तर कुंजी के संबंध में अपनी आपत्तियां / अभ्यावेदन (Objections / Reports) प्रस्तुत किए। हालांकि याचिकाकर्ता (Petitioners) ने आपत्तियां दर्ज नहीं कीं लेकिन प्रश्न नं पर आपत्तियां दर्ज की गईं। प्रश्न नंबर 35, 44 और 91 जिसके संबंध में, याचिकाकर्ता (Petitioner) व्यथित महसूस करता है, में भी याचिकर्ता ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी।
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आयोग (UPPSC) की नीति के अनुसार, आपत्तियों की जांच के लिए आयोग द्वारा गठित प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों से मिलकर विषय विशेषज्ञ समिति के समक्ष सभी आपत्तियां / अभ्यावेदन प्रस्तुत किए गए थे। विषय विशेषज्ञ समिति ने सभी अभ्यावेदन का विस्तार से परीक्षण किया और उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत आपत्तियों पर विचार किया। विषय विशेषज्ञ समिति ने पूरी तरह से विचार के बाद विकल्पों के बीच मौजूद सबसे सही उत्तरों में से सही का चुनाव किया। विशेषज्ञ समिति ने भी एक प्रश्न को हटाने के लिए निष्कर्ष निकाला और सिफारिश कि यह प्रश्न गलत था, अर्थात् प्रश्न संख्या 73 । विषय विशेषज्ञ समिति ने किसी भी अन्य उत्तर में कुछ भी गलत नहीं पाया।

विषय विशेषज्ञ समिति (Expert Panel) की रिपोर्ट के बाद और संशोधित उत्तरों के आधार पर, याचिकाकर्ता (Petitioner) सहित सभी उम्मीदवारों की उत्तर पुस्तिकाओं (answeres keys) का मूल्यांकन किया गया था और उनके अनुसार अंक दिए गए हैं। प्रश्नपत्रों के अधिकतम अंक 300 थे और प्रत्येक प्रश्न के बराबर अंक थे, यानी सभी में 120 प्रश्नों में से प्रत्येक के लिए 2.5 अंक थे, इसलिए एक प्रश्न को हटाने से 300 के आधार पर अंकों का आवंटन किया गया। एक प्रश्न के विलोपन पर ( जिसका अर्थ है 120 - 1 = 119 ) 119 कुल प्रश्न बचे थे।

याचिकाकर्ता ने 91 सही उत्तर दिए थे और उसे सही उत्तरों की संख्या के आधार पर वास्तविक अंक से सम्मानित किया गया अर्थात 300/119 x 91 = 229.41। इस वास्तविक अंक को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार स्केलिंग सिद्धांत के अनुसार स्केलिंग स्कोर 235.31 किया गया।

इस प्रकार, यह पता लगाने पर स्पष्ट है कि एक प्रश्न को गलत तरीके से प्रश्न पत्र में रखा गया था, देखभाल की गई और आयोग द्वारा दिए गए पूर्वोक्त कथन के अनुसार अंक संशोधित किए गए, जो इस न्यायालय की एक खंडपीठ के सिविल विविध (Civil Miss) फैसले में 2007 की रिट याचिका संख्या (Writ Petition No) 9685 रियाज़ खान बनाम यूपी राज्य और अन्य का समर्थन करते हैं, जिसका निर्णय दिनांक 05.1.08 को निर्णय लिया गया।

प्रश्न संख्या 35, 44 और 91 के उत्तर सही नहीं थे। विशेषज्ञ समिति (Expert Panel) ने उम्मीदवारों द्वारा दावा किए गए उत्तरों और आयोग (UPPSC) द्वारा अनुमोदित उत्तरों पर विचार किया था।

विशेषज्ञ समिति (Expert Panel) की रिपोर्ट हमारे सामने रखी गई है और आयोग पता है कि आइना-ए-अकबरी में दिए गए शब्द "महसूल" का अर्थ और इतिहास की पुस्तक में श्री इरफान हबीब और एलएच कुरैशी जैसे इतिहासकारों द्वारा सही दिए गए हैं। यह पाया गया कि विशेषज्ञ समिति द्वारा अनुमोदित उत्तर सही थे, जो याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए उत्तर नहीं थे।

याचिकाकर्ता (Petitioner) की दलील है कि एक अन्य पुस्तक में "महसूल" शब्द के लिए अलग अर्थ दिया गया है, यह अदालत विशेषज्ञों की उपस्थिति में, शब्द का अपना अर्थ नहीं बदलेगी।

विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है। इस मुद्दे पर आयोग ने विचार किया, जो इतिहासकार श्री इरफान हबीब द्वारा दी गई "महसुल" की परिभाषा पर निर्भर था और श्री एल.एच. कुरैशी जो ऐन-ए-अकबरी पर निर्भर थे। इसलिए, अदालत "महसूल" शब्द के अपने अर्थ की व्याख्या नहीं करेगी। यह विशेषज्ञों के लिए सही उत्तर खोजने के लिए और समस्या को हल करने के लिए है।

इसी तरह प्रश्न 35, 44 और 91 के उत्तर के संबंध में विशेषज्ञों की राय पर भरोसा किया गया था।

इस प्रकार, हम याचिकाकर्ता द्वारा निर्धारित चुनौती में योग्यता नहीं पाते हैं।

इसलिए, याचिका गलत है और इसे खारिज कर दिया गया है।

27-07-2009

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