SC & ST ACT Amendments 2018 Main Provisions and Supreme Court judgments & Review petition | अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम(अत्याचार निवारण) संशोधन 2018 मुख्य प्रावधान तथा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
Hello दोस्तों, आजकल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (ST&ST Act) शंशोधित,2018 काफी सुर्खियों में हैं; जैसे मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में सवर्णों ने केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में पारित अध्यादेश तथा अधिनयम का सड़को पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। जानते है इस विरोध प्रदर्शन की असल बजह क्या है। सरकार द्वारा अधिनियम में ऐसे क्या प्रावधान जोड़े गयें हैं कि इसका सवर्णों द्वारा सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। सबसे पहले 1989 में बने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के बारे कुछ जान लेते है।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का SC & ST ACT के बारे निर्णय
- अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्यचार निवारण) संशोधित अधिनियम 2018(मुख्य प्रावधान)
- अनुसूचितजाति तथा अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम में किये गए प्रावधान को परखेगा सुप्रीम कोर्ट
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989:-
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में पारित हुआ था जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को सुरक्षा के लिये प्रावधान किया गया था। अधिनियम की धारा 3 में बहुत सारी बातों को प्रावधान कर इनको सुरक्षा प्रदान कर दंड का प्रावधान किया गया था। यदि कोई व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य नहीं है, यदि अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्यों को जातिसूचक शब्दों का , किसी स्त्री की लज़्ज़ा को ठेश पहुचने बाले शब्दो का, घर पर गंदगी फेंकना, यौन उत्पीड़न करना, भूमि पर जबरजस्ती कव्जा करना आदि तो वो धारा 3 में वर्णित और अन्य किसी बात को करता है तो वह दण्ड का भागीदार होगा।
अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम में शिकायत मिलते ही थाना पर मुकदमा पंजीकृत होता है, मुकदमा पंजीकृत होने के तुरंत वाद मुकदमा के सभी प्रपत्र विवेचना हेतु क्षेत्राधिकारी कार्यालय भेज दिए जाते है क्योंकि इसकी विवेचना अधिनियम के अनुसार क्षेत्राधिकारी स्तर के अधिकारी द्वारा की जाती है। ऐसे मुकदमो में तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान है।
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विवाद का कारण हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का SC & ST ACT के बारे निर्णय:-
विवाद का कारण हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का SC & ST ACT के बारे निर्णय है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च को दिए गए अपने फैसले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए महतवपूर्ण फैंसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सिविल सेवकों को ब्लैकमेल करने के बढ़ते मामलों को देखते हुए अनुसूचित जाति तथा जनजाति अधिनियम में कई प्रावधानों को नरम किया गया था, जिनमें प्रमुख प्रावधान निम्न है
- अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम के मुकदमों में पीड़ित व्यक्ति द्वारा प्रार्थना पत्र देने पर सीधे पर मुकदमा पंजीकृत नहीं होगा।
- पहले उसमें डीएसपी 7 दिन तक प्रारंभिक जाँच करेगा, यदि जांच में आरोप सत्य पाए जाएंगे तभी मुकदमा पंजीकृत होगा। इससे झूठे मुकदमों की संख्या कम होगी।
- मुकदमा के बाद सीधे गिरफ्तारी नहीं होगी।
- प्रतिवादी अग्रिम जमानत ले सकेगा।
- सरकारी कर्मचारी कि गिरफ़्तारी में सक्षम अधिकारी से (नियुक्ति अधिकारी से अनिम्न) तथा सामान्य व्यक्ति कि गिरफ़्तारी में एसएसपी से पूर्व अनुमति ली जाएगी ।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद की स्थिति :-
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का कई राज्यों में अनुसूचित जाति ओर जनजाति के सदस्यों द्वारा देश भर में व्यापक प्रदर्शन किया गया। देश भर में भारत बंद का आवाहन भी किया गया। केंद्र सरकार में शामिल रामविलास पासवान (लोक जान शक्ति पार्टी) तथा रामदास अठावले (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया) ने सरकार पर अधिनियम बनने तक अध्यादेश लाकर पुरानी स्थिति लागू करने के लिए दबाव डाला गया। सरकार ने भारत बंद तथा उपरोक्त दबाव के कारण पहले अध्यादेश फिर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्यचार निवारण) संशोधित अधिनियम 2018 पारित कराया।
अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्यचार निवारण) संशोधित अधिनियम 2018(मुख्य प्रावधान):-
संशोधित एक्ट में कुछ नए प्रावधान जो पहले लागू नहीं थे , को शामिल किया गया है-
1-पुरानी स्थिति को बहाल कर दिया गया है, अभियोग पंजीकृत से पहले प्रारम्भिक जाँच कि जरुरत नहीं होगी; यानी पीड़ित के प्रार्थना पत्र मिलते ही तुरंत संबंधित धाराओं में अभियोग पंजीकरण होगा,
2- तुरंत गिरफ्तारी होगी।
3- गिरफ़्तारी से पहले किसी से इजाजत कि जरुरत नहीं होगी।
4- कुछ नए अपराधों को शामिल किया गया है। जिनमें जिन अपराधों को शामिल किया गया है, उनमें सिर के बाल छीलना या मूंछ काटना, चप्पलो की माला पहनाना, सिंचाई की सुविधा देने से इनकार करना, किसी दलित या आदिवासी को मानव या जानवर का शव ठिकाने लगाने के लिए बाध्य करना, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार करना, चुनाव लड़ने से एससी या एसटी कैंडिडेट को रोकना, जातिगत नामों से गालियां देना, मल ढुलवाना या इसके लिए बाध्य करना, घर या गांव छोडने के लिए बाध्य करना, एससी या एसटी महिला के कपड़े उतरवाकर उसके सम्मान को ठेस पहुंचाना, महिला को छूना या उसके खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करना आदि प्रमुख हैं।
5- पीड़ित को मुआवजा की राशि को भी बढ़ाया गया है।
6- मुआवजे की राशि को 7 दिन के अंदर पीड़ित को देना होगा।
7- पुलिस 60 दिन के अंदर न्यायालय में चार्जशीट दाखिल करेगी।
8- ऐसे मुकदमों की सुनवाई के लियें एक विशेष कोर्ट का गठन जिले स्तर पर होगा, जो ऐसे मुकदमों को जल्दी से निस्तारण करेगा।
9- प्रतिवादी अग्रिम जमानत नहीं ले सकेगा।
10- ऐसे मामलों में अदालत खुद संज्ञान भी ले सकेगी।
11- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को मुकदमें की पैरवी के लियें आर्थिक मदद भी दी जाएगी।
12- ऐसे मामलों के लियें विशेष अभियोजन अधिकारियों की भी नियुक्ति की जाएगी।
13- दंड का प्रावधान 06 माह से 5 वर्ष किया गया है।
14- यदि विवेचना में वादी द्वारा लगाए गए आरोप झूठे पाए जाते है तो भी उन के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कि जा सकेगी खासकर महिलाओं के मामलो में।
अनुसूचितजाति तथा अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम में किये गए प्रावधान को परखेगा सुप्रीम कोर्ट:-
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में इस अधिनियम को चुनौती देने बाली याचिकाएं दाखिल कि गयी है । सुप्रीम कोर्ट ( जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस अशोक भूषण कि पीठ )अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति शंशोधित अधिनियम में किये गए प्रावधान को पुनः अवलोकन करेगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 6 सप्ताह में केंद्र से जवाव दाखिल करने को बोला है ।
समीक्षा:-
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ओर सरकार के अधिनयम के विश्लेषण से एक बात स्पष्ट है कि सरकार ने यह अनुसूचित जाति और जनजाति को खुश करने के लिए अधिनियम बनाया है ताकि वह आने वाले लोक सभा चुनाव में इसका लाभ ले सके ओर सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय इसलियें दिया ताकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत झूठी सूचनाओं ओर मुकदमों को रोक जा सके। यह पूर्णतः सच है कि ज्यादातर अभियोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में झूठे पंजीकृत होने लगे थे। अधिनियम का दुरुपयोग होने लगा था। अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग आपसी रंजिश में झूठे मुकदमें लिखाने लगे थे। सरकार द्वारा फिर से ऐसा प्रावधान न केवल द्वारा किया गया वल्कि उसे पहले से ओर भी मजबूत कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट भी सही निर्णय देने के बाद भी सरकार के आगे असहाय है , इससे स्पष्ट सिद्ध होता है। नए प्रावधानों को एक उदाहरण से समझते है। यदि अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी व्यक्ति द्वारा किसी सवर्ण के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कराया जाता है कि मुझे जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है और ये झूठा मुकदमा भी हो तो पुलिस मुकदमे के बाद प्रतिवादी को तुरंत गिरफ्तार करेगी और कोर्ट से उसे इन अधिनियम के कारण अग्रिम जमानत भी नहीं मिलेगी। पुलिस 60 दिन के अंदर चार्जशीट भी दाखिल कर देगी। यदि विवेचना में वादी द्वारा लगाए गए आरोप झूठे पाए जाते है तो भी उन के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कि जा सकेगी खासकर महिलाओं के मामलो में।
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