Jhuthi FIR se Kaise Bache | झूठी FIR से कैसे बचें | How to Cancel Fake FIR (Section 482 Crpc)
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के अंतर्गत माननीय उच्च न्यायालय को बहुत सारे अधिकार दिए गए हैं जिसमें वह किसी व्यक्ति के विरुद्ध अगर कोई फर्जी मुकदमा लिखा देता है तो वह ऐसे मुकदमे को निरस्त या रद्द कर सकता है। इसे FIR को quash करना भी कहते हैं। इस धारा के अंतर्गत जमानत प्रार्थना पत्र अभियुक्त व्यक्ति द्वारा खुद की जमानत करने के लिए भी दिया जाता है तथा जिस व्यक्ति की शिकायत पर पुलिस थाना अभियोग पंजीकृत नहीं कर रहा है, तब भी इस धारा के अंतर्गत अनुतोष पा सकते हैं किंतु इस धारा से फर्जी मुकदमे को कैंसिल करने के बारे में बताऊंगा जो हाई कोर्ट द्वारा किया जाता है। माननीय उच्च न्यायालय को 482 के अंतर्गत किसी व्यक्ति के विरुद्ध झूठा मुकदमा पंजीकृत हो गया है या करा दिया गया है तो वह माननीय उच्च न्यायालय द्वारा कैंसिल कर दिया जाता है। इससे नागरिकों को झूठी घर से निजात मिल जाता है तो उनके साथ न्याय हो पाता है।
How to Cancel Fake FIR (Section 482 Crpc) |
किन मामलों में धारा 482 के अंतर्गत माननीय उच्च न्यायालय द्वारा FIR को रद्द किया जाता है?
धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत खास कर दो मामलों में कारवाही की जाती है ।पहला मामला दहेज उत्पीड़न में:
जिसमें का होता है जिसमें वधू पक्ष द्वारा समझौता होने पर वर पक्ष के खिलाफ जो मुकदमा लिखाया जाता है उसे निरस्त कराने हेतु इसी धारा के अंतर्गत माननीय उच्च न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया जाता है और माननीय उच्च न्यायालय इस आधार पर उसे FIR को निरस्त कर देता है।दूसरा आपराधिक मामलों में:
यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध जैसे बलात्कार, मारपीट इत्यादि मामलों में, यदि अभियोग पंजीकृत किया गया है तब भी माननीय उच्च न्यायालय उस FIR को निरस्त कर सकता है । यदि निर्दोष व्यक्ति जिसके खिलाफ मुकदमा कायम किया गया है उसके पास के पर्याप्त सबूत है।
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धारा 482 के अंतर्गत माननीय उच्च न्यायालय में आवेदन करते समय क्या क्या डाक्यूमेंट्स प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न करना चाहिए ?
यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध झूठी एफआइआर पंजीकृत करा दी जाती है तो वह अपने विरुद्ध झूठी एफ आई आर को किसी वकील के माध्यम से हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर रद्द करा सकता है। इसके लिए उसे वकील के माध्यम से जब प्रार्थना पत्र माननीय उच्च न्यायालय में दायर करा जाता है तो अपनी बेगुनाही का सबूत भी देने चाहिए जैसे ऑडियो रिकॉर्डिंग, वीडियो रिकॉर्डिंग, डाक्यूमेंट्स, मेडिकल रिपोर्ट्स या जो बेगुनाह साबित करने के लिए आवश्यक हो।धारा 482 के अंतर्गत जब तक मामला माननीय उच्च न्यायालय में विचाराधीन रहता है तब तक गिरफ्तारी भी नहीं होती है और यदि माननीय उच्च न्यायालय पाता है कि आपके पास पर्याप्त सबूत है तो वह f.i.r. को तुरंत निरस्त कर देता है इस तरह से आप अपने खिलाफ लिखाई गयी झूठ ईएफआईआर से निजात पा सकते हो।
आशा करता हूं आपको यह लेख पसंद आया होगा।
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