Legal Action for False FIR
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में, मैं आपको बताने वाला हूं यदि कोई व्यक्ति आप के खिलाफ झूठा मुकदमा (False FIR or Case) लिखाये या झूठा आरोप लगाए तो भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की किन धाराओं (Sections) के अंतर्गत उसके विरुद्ध कार्रवाई कर सकते हो।
समाज में बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो आपसी मनमुटाव के कारण या अन्य किसी कारण से स्वार्थ बस किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध झूठे मुकदमा (False Case OR FIR- First Information Report) लिखा देते हैं । ऐसी स्थिति में जिनके खिलाफ मुकदमा लिखा जाता है वह व्यक्ति मानसिक पीड़ा (Mental Tension) में रहता है तथा उसे काफी धन भी खर्च करना पड़ता है तथा बेवजह समय भी देना पड़ता है | Read also...झूठी FIR से कैसे बचें | How to Cancel Fake FIR (Section 482 Crpc)
Legal Action for False FIR |
धारा 182 आईपीसी लोक सेवक को अपनी विधि पूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति की क्षति करने के आशय से झूठी सूचना देना।
(False information, with intent to cause public servant to use his lawful power to the injury of another person)
अपराध की प्रकृति
यह एक जमानती, गैर-संगेय (NCR) अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है|
Offence
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Punishment
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Giving false information to a public servant in order to cause him to use his lawful power to the injury or annoyance of any person
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6 Months or Fine or Both
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Cognizance
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Bail
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Triable By
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Non-Cognizable
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Bailable
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Any Magistrate
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धारा 211 आईपीसी: क्षति करने के आशय से अपराध का झूठा आरोप।
( False charge of offence made with intent to injure )
तथा यदि ऐसी आपराधिक कार्रवाई मृत्युदंड आजीवन कारावास या 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दंडनीय अपराध के झूठे आरोप पर शुरू की गई है तो उसे किसी अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, से दंडनीय होगा और साथ ही आर्थिक दंड के लिए भी उत्तरदाई होगा।
Offence
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Punishment
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False charge of offence made with intent to injure
If offence charged be punishable with imprisonment for 7 Years or
upwards
If offence charged be capital or punishable with imprisonment for
life
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2 Years or Fine or Both
7 Years + Fine
7 Years + Fine
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Cognizance
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Bail
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Triable By
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Non-Cognizable
Non-Cognizable
Non-Cognizable
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Bailable
Bailable
Bailable
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Magistrate First Class
Magistrate First Class
Court of Session
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अपराध की प्रकृति
नंबर 1 क्षति करने के आशय से अपराध का झूठा आरोप लगाने परसजा 2 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड या दोनों
यह एक जमानती, गैर संगेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
नंबर दो अपराध 7 बर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय है तो
सजा 7 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड
यह एक जमानती, गैर संगेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
नंबर 3 यदि अपराध मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडनीय है तो
सजा 7 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड
यह एक गैर जमानती, संगेयअपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
निष्कर्ष
यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध किसी लोकसेवक को झूठी सूचना देता है या उसके खिलाफ झूठा मुकदमा दायर कराता है ऐसे शिकायतकर्ता के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 182 के अंतर्गत मुकदमा कायम करा सकते हैं जिसमें 6 महीने का कारावास तथा ₹1000 का जुर्माना यह दोनों से दंडित करने का प्रावधान है।यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध झूठा आरोप लगाता है उसके विरुद्ध झूठा आरोप या लगाकर मुकदमा पंजीकृत करा देता है तो ऐसे व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 211 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर दंडित कराया जा सकता है। इस धारा में तीन कंडीशन दी गई है। नंबर 1 यदि कोई व्यक्ति क्षति करने के आशय से अपराध का झूठा आरोप लगाता है तो उसे 2 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड या दोनों से दंडित किया जाएगा।
नंबर दो यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दंडनीय अपराध का आरोप लगाता है तो वह व्यक्ति जो झूठा आरोप लगाता है , 7 वर्ष की अवधि के कारावास और आर्थिक दंड से दंडित हो सकता है । नंबर 3 यदि आरोपित व्यक्ति मृत्युदंड, आजीवन कारावास से दंडित अपराध का झूठा आरोप लगता है यानी कि किसी दूसरे व्यक्ति को ipc के अंतर्गत मृत्यु दंड या आजीवन कारावास से दण्डित अपराध के मामलों में सजा मिले तो उसे 7 वर्ष की अवधि के कारावास और आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा । और यह एक अपराध गैर जमानती और संगेय अपराध की श्रेणी में आता है तथा सत्र न्यायालय द्वारा भी विचारणीय है।
इस तरह से आपके विरुद्ध कोई झूठा मुकदमा लगा दे या झूठे अपराध का आरोप लगाए तो धारा 211 के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है और उसे सजा दिलाई जा सकती है।
विवेचक द्वारा जब विवेचना से आरोप झूठा पाया जाता है तो वह मुकदमे में अंतिम रिपोर्ट लगाकर धारा 182 ipc की कार्यवाही की संस्तुति करता है। यह संसृति Case Diary में अंतिम रिपोर्ट लगते समय की जाती है । अंतिम रिपोर्ट के साथ तब Closure Report भी दी जाती है।
आशा करता हूं कि आपको लेख पसंद आया होगा|\
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1 Comments
Excellent Post.Please keep it up !
ReplyDeleteI'm certainly not an expert, but I' ll try my hardest to explain what I do know and research what I don't know.
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