Legal Action for False FIR


Legal Action for False FIR


मस्कार दोस्तों, इस लेख में,  मैं आपको बताने वाला हूं यदि कोई व्यक्ति आप के खिलाफ झूठा मुकदमा (False FIR or Case) लिखाये  या झूठा आरोप लगाए तो भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की किन धाराओं (Sections) के अंतर्गत उसके विरुद्ध कार्रवाई कर सकते हो।
समाज में बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो आपसी मनमुटाव के कारण या अन्य किसी कारण से स्वार्थ बस किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध झूठे मुकदमा (False Case OR FIR- First Information Report) लिखा देते हैं । ऐसी स्थिति में जिनके खिलाफ मुकदमा लिखा जाता है वह व्यक्ति मानसिक पीड़ा (Mental Tension) में रहता है तथा उसे काफी धन भी खर्च करना पड़ता है तथा बेवजह समय भी देना पड़ता है | Read also...झूठी FIR से कैसे बचें | How to Cancel Fake FIR (Section 482 Crpc)
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Legal Action for False FIR

क्या आप जानते हो कि ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध आप भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) धारा 182 तथा धारा 211 के अंतर्गत कार्यवाही कर सकते हो और उसके खिलाफ मुकदमा लिखा कर उसे सजा दिलवा सकते हो इस लेख में इसी बारे में हम इसी बारे में बात करने वाले हैं। सबसे पहले जानते हैं कि धारा 182 तथा धारा 211 क्या होती है-



धारा 182 आईपीसी  लोक सेवक को अपनी विधि पूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति की क्षति करने के आशय से झूठी सूचना देना।

(False information, with intent to cause public servant to use his lawful power to the injury of another person)


जो कोई व्यक्ति किसी लोकसेवक को ऐसी सूचना देगा जिसका निराधार का झूठा होना वह जानता है तथा उसे ज्ञान और विश्वास है । इस आशय से देगा कि वह उस लोक सेवक को प्रेरित करे कि वह उस लोक सेवक को प्रेरित करे, जानते हुए देगा कि वह कोई ऐसा काम करें जिससे दूसरे व्यक्ति को हानि पहुंचे तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है या  ₹1000 का आर्थिक दंड या  दोनों से दंडित किया जाएगा।

अपराध की प्रकृति

यह एक जमानती, गैर-संगेय (NCR) अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है|
Offence
Punishment
Giving false information to a public servant in order to cause him to use his lawful power to the injury or annoyance of any person
6 Months or Fine or Both


Cognizance
Bail
Triable By
Non-Cognizable
Bailable
Any Magistrate

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धारा 211 आईपीसी: क्षति करने के आशय से अपराध का झूठा आरोप।

( False charge of offence made with intent to injure )


जो कोई व्यक्ति जानते हुए कोई आरोप न्याय संगत नहीं है क्षति करने के आसन से उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई आपराधिक कार्यवाही संस्थित करेगा या कराएगा या झूठा आरोप लगाएगा कि उसने अपराध किया है तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे 2 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या आर्थिक दंड दोनों से दंडित किया जाएगा ।
तथा यदि ऐसी आपराधिक कार्रवाई मृत्युदंड आजीवन कारावास या 7 वर्ष या उससे अधिक के  कारावास  से दंडनीय अपराध के झूठे आरोप पर शुरू की गई है तो उसे किसी अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, से दंडनीय होगा और साथ ही आर्थिक दंड के लिए भी उत्तरदाई होगा।
Offence
Punishment
False charge of offence made with intent to injure
If offence charged be punishable with imprisonment for 7 Years or upwards
If offence charged be capital or punishable with imprisonment for life
2 Years or Fine or Both
7 Years + Fine
7 Years + Fine


Cognizance
Bail
Triable By
Non-Cognizable
Non-Cognizable
Non-Cognizable
Bailable
Bailable
Bailable
Magistrate First Class
Magistrate First Class
Court of Session

अपराध की प्रकृति

नंबर 1  क्षति करने के आशय से अपराध का झूठा आरोप लगाने पर
सजा 2 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड या दोनों
यह एक जमानती, गैर संगेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
नंबर दो अपराध 7 बर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय है तो
सजा 7 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड
यह एक जमानती, गैर संगेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
नंबर 3 यदि अपराध मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडनीय है तो
सजा 7 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड 
यह एक गैर जमानती, संगेयअपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

निष्कर्ष

यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध किसी लोकसेवक को झूठी सूचना देता है या उसके खिलाफ झूठा मुकदमा दायर कराता है ऐसे शिकायतकर्ता के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 182 के अंतर्गत मुकदमा कायम करा सकते हैं जिसमें 6 महीने का कारावास तथा ₹1000 का जुर्माना यह दोनों से दंडित करने का प्रावधान है।
यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध झूठा आरोप लगाता है उसके  विरुद्ध झूठा आरोप या लगाकर मुकदमा पंजीकृत करा देता है तो ऐसे व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 211 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर दंडित कराया जा सकता है। इस धारा में तीन कंडीशन दी गई है।  नंबर 1 यदि कोई व्यक्ति क्षति करने के आशय से अपराध का झूठा आरोप लगाता है तो उसे 2 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड या दोनों से दंडित किया जाएगा।
नंबर दो यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दंडनीय अपराध का आरोप लगाता है तो वह व्यक्ति जो झूठा आरोप लगाता है , 7 वर्ष की अवधि के कारावास और आर्थिक दंड से दंडित हो सकता है । नंबर 3 यदि आरोपित व्यक्ति मृत्युदंड, आजीवन कारावास से दंडित अपराध का झूठा आरोप लगता है यानी कि किसी दूसरे व्यक्ति को ipc के अंतर्गत मृत्यु दंड या आजीवन कारावास से दण्डित अपराध के मामलों में सजा मिले तो उसे 7 वर्ष की अवधि के कारावास और आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा । और यह एक अपराध गैर जमानती और संगेय अपराध की श्रेणी में आता है तथा सत्र न्यायालय द्वारा भी विचारणीय है।
इस तरह से आपके विरुद्ध कोई झूठा मुकदमा लगा दे या झूठे अपराध का आरोप लगाए तो धारा 211 के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है और उसे सजा दिलाई जा सकती है।
विवेचक द्वारा जब विवेचना से आरोप झूठा पाया जाता है तो वह मुकदमे में अंतिम रिपोर्ट लगाकर धारा 182 ipc की कार्यवाही की संस्तुति करता है। यह संसृति Case Diary में अंतिम रिपोर्ट लगते समय की जाती है । अंतिम रिपोर्ट के साथ तब Closure Report भी दी जाती है।
आशा करता हूं कि आपको लेख पसंद आया होगा|\

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I'm certainly not an expert, but I' ll try my hardest to explain what I do know and research what I don't know.

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