Difference between Judge and Magistrate in Hindi | What is Civil Case and Criminal Case In Hindi

Difference between Judge and Magistrate in Hindi | What is Civil Case and Criminal Case In Hindi 

मस्कार दोस्तों, आज इस लेख में, मैं आपको बताने वाला हुँ Judge और Magistrate में क्या अंतर होता है। सामान्यतः हम judge और magistrate को एक ही मानते हैं किंतु judge और magistrate दोनों अलग-अलग होते हैं। Judge और Magistrate के अंतर को समझने से पहले दीवानी मामले (civil case) तथा फौजदारी मामलों (Criminal case) को समझना आवश्यक है। यदि हम दीवानी मामले (Civil case) और फौजदारी मामलों (Criminal case) को नहीं समझ पाएंगे तो हम Judge और Magistrate के अंतर को भी नहीं समझ पाएंगे।

दो तरह के मामले होते हैं दीवानी मामले और फौजदारी मामले। दीवानी और फौजदारी उर्दू के शब्द है। दीवानी मामलों को हिंदी में व्यवहार मामले। English में Civil case कहते हैं तथा फौजदारी मामलों को हिंदी में दाण्डिक मामले। English में Criminal case कहते हैं।
                   FIR और NCR में अंतर

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    दीवानी मामले (Civil Case):

    दीवानी मामले (Civil Case) उन मामलों को कहते हैं जिनमें अधिकार, अनुतोष तथा क्षतिपूर्ति की मांग की जाए। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति किसी के मकान पर कब्जा कर ले और जिस के मकान पर कब्जा किया गया है वह व्यक्ति कोर्ट की शरण में जाए तथा वापस अपनी संपत्ति पर अधिकार चाहे तथा जितनी अवधि कब्जे के समय में रही गई है उतनी अवधि की क्षतिपूर्ति मांगे तो यह मामला दीवानी मामला या सिविल मामला (Civil case) कहलाएगा। कॉपी राइट्स (Copy right), पेटेंट (Patent), ट्रेडमार्क्स (Trademark) इत्यादि के सभी मामले सिविल मामले होते है।

    फौजदारी मामले (Civil case):

    फौजदारी मामले (Civil case) उन मामलों को कहते हैं जिनमें अपराध घटित होने पर दंड का प्रावधान हो। भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत हत्या, बलात्कार, अपहरण, लूट, डकैती इत्यादि के सभी मामले आपराधिक मामले हैं तथा अन्य विशेष अधिनियम जिनमें अपराध घटित होने पर पर दंड का प्रावधान किया गया है जैसे prevention of curruption act, IT act, SC & ST act इत्यादि सभी मामले फौजदारी मामले कहे जाते हैं। जैसे उपरोक्त उदाहरण उदाहरण में कोई व्यक्ति किसी के मकान पर कब्जा कर ले और जिस के मकान पर कब्जा किया गया है कब्ज़ा करने वाले व्यक्ति को जेल में भिजवाना चाहे तो वह फौजदारी मामला कहा जाएगा।

    Judge और Magistrate (अंतर)

    दीवानी मामलों को सुनने वाले न्यायिक अधिकारी को Judge कहा जाता है तथा फौजदारी मामलों को सुनने वाले न्यायिक अधिकारी को Magistrate कहा जाता है | भारत के संविधान में Lower Court, Upper Court, उच्च न्यायालय (High Court) तथा उच्चतम न्यायालय (Supreme court) का संगठन किया गया है। 
    Lower Court में जो न्यायिक अधिकारी दीवानी मामलों को सुनते हैं उन्हें Civil Judge कहा जाता है तथा फौजदारी मामलों को सुनने वाले न्यायिक अधिकारी को Magistrate कहा जाता है जैसे जुडिशल मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate), एसीजेएम (Acjm), सीजेएम (Cjm) इत्यादि।
    Upper court में आपने देखा होगा कि कोर्ट को जिला एवं सत्र न्यायालय कहा जाता है। एक ही व्यक्ति दीवानी और फौजदारी मामले को सुनते हैं। जब वह दीवानी मामले को सुनते है तो जिला जज या जिला न्यायाधीश कहलाते हैं तथा जब वह फौजदारी मामलों को सुनते हैं तो सत्र न्यायाधीश कहलाते हैं।
    उच्च न्यायालय तथा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को न्यायमूर्ति कहा जाता है क्योंकि उनका कहना ही न्याय होता है इसलिए उन्हें न्याय की मूर्ति कहा जाता है। उच्च न्यायालय तथा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के नाम के आगे Justice लिखा जाता है। उनकी Judgement को नीचे की अदालत तथा खुद की अदालत में नजीर की तरह लिया जाता है। court इन्हीं नजीरों के आधार पर निर्णय देता है।

    आशा करता हूं कि आपको इस लेख के माध्यम से जज (Judge) और मजिस्ट्रेट (Magistrate) में क्या अंतर होता है इसके बारे में पता लगा होगा।

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